प्रबन्धक निदेशक

सुनील दत्त शर्मा

प्रबन्धक निदेशक की कलम से ....

महात्मा अरविंद के अनुसार, " मानव भौतिक जीवन व्यतीत करते हुऐ तथा अन्य मानवों की सेवा करते हुऐ, अपने मानस को अति मानस (super - mind) तथा स्वयं को 'अति मानव ' (superman) में परिवर्तित कर सकता है।

आज की परिस्थितियों में, जब हम अपनी प्राचीन सभ्यता , संस्कृति एवं परम्परा भूलकर, भौतिकवादी सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं। आज धार्मिक एवं आध्यात्मिक जागृति की नितान्त आवश्यकता हैं। “महर्षि अरविन्द” के शब्दों में, भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान जैसी उत्कृष्ट उपलब्धि, वगैर उच्च कोटि के अनुशासन के अभाव में संभव नही हो सकती जिसमें कि आत्मा व मस्तिष्क की पूर्ण शिक्षा निहित है ।

शिक्षा का उद्देश्य -शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य विकासशील आत्मा के सर्वांगीण विकास में सहायक होना तथा उसे उच्च आदर्शों के लिए प्रयोग हेतु सक्षम बनाना है । शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में यह विश्वास जाग्रत करना हैं कि वह मानसिक तथा आत्मिक दृष्टि से पूर्ण रुप से सक्षम हैं। शिक्षा द्वारा व्यक्ति की अन्तर्निहित बौद्धिक एवं नैतिक क्षमताओ का सर्वोच्च विकास होना चाहिए । शिक्षा का प्रयोजन, समस्त ज्ञानेन्द्रियों का सम्यक और समुचित सदुपयोग करना, नये बौधिक शिक्षण कौशलो की जिज्ञासा तथा मस्तिष्क का उच्चतम सीमा तक पूर्ण प्रशिक्षण होना चाहिए ।

गुरु का महत्व - इस प्रकार की शिक्षा - दीक्षा देने हेतु गुरु या अध्यापक की भूमिका बहुत अहम हो जाती है । अध्यापक को अपने शिष्य के प्रति मित्र जैसा व्यवहार, पथ प्रदर्शक अथवा सहायक के रुप में कार्य करना चाहिए । शिष्य के प्रति स्वामित्व का भाव, सदैव शिष्य के लिए घातक होता है। विद्यार्थियों में अच्छी आदतों का निर्माण अनुशासन द्वारा ही संभव हैं । अत: शिक्षक को सदैव उच्च आदर्शों का प्रदर्शन करना चाहिए | महापुरुषों के उदाहरण द्वारा विद्यार्थियों के नैतिक विकास हेतु ,शिक्षको द्वारा उत्प्रेरित किया जाना चाहिए ।

शिक्षण विधि - शिक्षण एक विज्ञान है, जिसके द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन आना अनिवार्य हैं । बाहर से शिक्षार्थी के मस्तिष्क में कोई चीज थोपी न जाए । शिक्षण प्रक्रिया द्वारा शिक्षार्थी के मस्तिष्क की क्रिया को ठीक दिशा देनी चाहिए । प्रत्येक विद्यार्थी को व्यक्तिगत अभिवृत्ति एवं योग्यता के अनुकूल शिक्षा देनी चाहिए । विद्यार्थी के अपनी प्रवृत्ति के अनुसार , विकास के अवसर मिलने चाहिए ।

योग शिक्षा अनिवार्य रुप से दी जानी चाहिए जिसमें चित्त की शुद्धि संभव हो सके हमारा मानना है कि वही शिक्षक प्रभावी शिक्षण कार्य कर सकता है, जो उपरोक्त विधि से विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करे, शिक्षित विद्यार्थियों को ज्ञानेन्द्रियो और मस्तिष्क के सही उपयोग द्वारा उनकी पर्यवेक्षण (Observation ) अवधान (Attention) , निर्णय तथा स्मरण शक्ति का विकास करने में , शिक्षकों को सहायता करनी चाहिए ।

हमारे बाल ज्ञान निकेतन इण्टर कॉलेज, बास्टा में शिक्षण विधि का आधार और मान्यता है कि "शिक्षक प्रशिक्षक नही है, वह तो सहायक और पथ प्रदर्शक है I वह केवल ज्ञान ही नही देता वल्कि वह ज्ञान प्राप्त करने की दशा व दिशा का मार्ग प्रस्सत करता हैं I शिक्षण पद्धति की उत्कृष्टता शिक्षक पर ही निर्भर हैं ।"

विद्यालय का उद्देश्य - विद्यार्थियों का समग्र विकास ही विद्यालय का उद्देश्य हैं । विद्यालय द्वारा न केवल वास्तविक लाइव मॉडल, उपकरणों व प्रैक्टिकल गतिविधियों की सहायता द्वारा, विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती हैं । वल्कि अन्य कार्यक्रमों जैसे डिबेट (वाद विवाद) प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, निबन्ध प्रतियोगिता, स्पेलिंग की प्रतियोगिता, आर्ट और क्राफ्ट प्रतियोगिता, मूक प्रदर्शन आदि के द्वारा, विद्यार्थियों में कौशल विकास किया जाता है। वर्ष भर, महापुरुषों की पुण्य तिथियों पर उनके जीवन चरित्र के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी जाती हैं । विद्यालय में खेलों के विकास के लिए, विशेष रूप से नियुक्त क्रीडा - अध्यापक , विद्यार्थियों को बॉली -बॉल, बैडमिंटन, विभिन्न प्रकार की दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद, जैवलिन थ्रों, डिस्कस थ्रों तथा कबड्डी आदि खेल, निर्धारित समय में खिलाते हैं जो शारीरिक रुप से विद्यार्थियों को सार्मथवान बनाता हैं ।

विद्यालय का उद्देश्य , न केवल विद्यार्थियों को विषयों में शिक्षित करना है , वरन् सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना हैं। जिससे वह समाज में जाकर अपनी छाप छोड़ सके और उसकी दशा और दिशा बदलने में अपना योगदान दे सकें ।