हमें इस प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का समुचित विकास करना हैं, जिसके द्वारा ऐसी भावी युवा पीड़ी का निर्माण हो जिसमें अदभुत राष्ट्र भक्ति तथा निस्वार्थ समाज सेवा का भाव कूट - कूट भरा हो तथा जिसके द्वारा विद्यार्थियों का शारीरिक बौद्धिक और चारित्रिक दृष्टि से पूर्ण विकास हो। ऐसी शिक्षा से शिक्षित संस्कारित, अनुशासित, देशभक्त विद्यार्थी, अपने जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए अपने देशवासी, ग्रामीणों, नागरिकों तथा झुग्गी - झोपड़ियों में भी निवास करने वाले बन्धु - बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों अन्धविश्वासों, शोषण और अन्याय से मुक्त करा सकें। इस विद्यालय के विद्यार्थी, समाज जीवन को समृद्धिसाली, समरस भेदभाव रहित और संस्कारित बनाने के लिए पूर्ण रूप से सदैव समर्पित रहे। ऐसी मेरी अपेक्षा है, प्रभु से प्रार्थना भी हैं।
पूज्या महा मांगलिक वात्सल्यमयी माँ की कलम से - माँ सन्तान के लिए ममता और स्नेह तथा वात्सल्य की साक्षात मूर्ति स्वरूपा होती है। इसलिए ठीक ही कहा हैं Mother is a first teacher of a child. अर्थात शिशु के लिए सबसे पहला गुरु या शिक्षक, माता ही तो हैं। माता अपने ममत्व के भावों से एक मूक अबोध प्राणी को विधाता की सर्व श्रेष्ठ कृति मानव वना देती हैं। माँ ही वह श्रेष्ठ विचार और चिराधार हैं जिसके द्वारा ही केवल मानव / (जीव) सृजन सम्भव हो सका हैं। माँ है तो सृष्टि हैं। माँ सर्वोत्कृष्टता हैं। इन्ही भावनाओं और विचारों की भावुकता से ओत - प्रोत होकर, मैं इस बाल ज्ञान निकेतन शिशु वृक्ष को समाज का पुष्पित पल्लवित विशाल वट वृक्ष के रूप में देखना चाहती हूं, यहीं मेरी अभिलाषा है। शिशु की अनुपम छवि निहार मिल जाता सबको स्वर्ग द्वार।